Thursday, September 12, 2013

'खून करायचाय !!! '


                                            


                       'खून  करायचाय  !!! '  जरा  आगळ  नाव  असणाऱ्या  या  प्रयोगाचे  सादरीकरण  NCPA  आयोजित "प्रतिबिंब"  या  नाट्यमहोत्सवात  करण्यात  आले.  "नाट्य  प्रयोग"  या  करता  म्हणतेय  कारण  दशकांचा  इतिहास  आणि  अनेक  नामवंत  कलाकारांनी  सादर  केलेली  ही  संहिता  पुन्हा  एकदा  रंगमंचावर आणण्याचे  काम 'stage  players '  च्या  तरुणांनी  उत्तमरीत्या  पार  पाडलंय.
               Stage players  यांचे  'खून  करायचाय'  हे  नाटक  म्हणजे  "sleuth "  या  मूळ नाटकाचा  मराठी  आविष्कार !  Anthony  Shaffer  लिखित , Tony  Award  winning  "sleuth "  या  नाटकाचे दिग्दर्शन Clifford Williams  यांनी  केले  होते.
        पुढे  १९७२  साली  याच  नाटकावर  आधारित  एका  चित्रपटाची  निर्मिती   झाली.   यातील  दोन अभिनेत्यांना  (Laurence  Olivier  आणि  Michael  Caine )  उत्कृष्ट  अभिनयासाठी  अकादमी  पुरस्कारांचे नामांकन  मिळाले.
               तर ,  राजवाडे  हा  एक  प्रसिद्ध  गूढ  कथाकार  आहे  आणि  त्याला  त्याच्या  या  प्रसिद्धीचा  गर्व / माज  ही आहे.  सतत  रहस्य  कथा  लिहिण्यात  गर्क  असलेल्या  राजवाडेचा स्वभावही  किंचित विचित्र  आहे. स्वतःच्या  आत्यंतिक  प्रेमात  असणाऱ्या  राजवाडेला  एका  रात्री  अजय  तळवळकर  नामक एक  तरुण राजवाडेच्या  शहराबाहेरील  एकाकी  वाड्यात  भेटायला  येतो. स्वतःच  कपड्यांचं  छोटस  दुकान  आणि struggling actor  असलेला  अजय  राजवाडेला  भेटायला  येतो  त्याच  कारण  म्हणजे - राजवाडे ची पत्नी सई. अजय हा सईचा  प्रियकर.  त्या  दोघांना  लग्न  करायचे  असल्याने  राजवाडेने  सईला  घटस्पोट  द्यावा  अशी  मागणी  अजय  करतो.
      मुळातच  स्वच्छंदी,  आत्मकेंद्री  राजवाडे चे  त्याच्या  PR  मोनिका  सोबत  affair  सुरु  असल्याने  तो हा  प्रस्ताव  तत्काळ  मान्य  करतो,  परंतु अजय  आणि  सई   राहणीमान  यातला  फरक  दाखवत  तो अजय ला  राजवाडेच्या  घरातील  वडिलोपार्जित 30 कोटी  रुपयॆ  किमतीचा  हार  चोरण्याची अट घालतो... आणि  इथून  सुरु  होतो  नाट्यमय  प्रवास... विनोदाची झालर  लेवून... रहस्यमय...खिळवणारा..
                                                     


                                                        


          केवळ  दोनच  अभिनेते   तब्बल  दोन  तास  रंगमंचावर  वावरत  असतात  परंतु  तरीही  प्रयोग रंगतदार  होतो  कारण, ) उत्तम  कथानक ,संवाद  आणि )  नवोदित  कलाकारांचा  सकस  अभिनय...          
           राजवाडेच्या  भूमिकेत  रोहन  गुजर  चपखल  बसलाय. राजवाडेचा   विक्षिप्त  स्वभाव,  माज ,अभिमानी  वृत्ती  त्याने  बारीकसारीक  क्रियाप्रतिक्रियांतून  उत्कृष्ट  साकारलेय. अमेय  बोरकर  याने साकारलेला  अजय  तळवळकर  हा  नावा  इतकाच  सरळसाधा  तरुणही  उत्तम  रंगलाय. अजयनेच साकारलेला  धनावडे  कथानका ला  एक वेगळे वळण देतो. थोडक्यात, अभिनयाच्या  अनुषंगाने  प्रयोग  सशक्त ठरलाय.        
            प्रयोगात  संगीताने  खूप  महत्वाची  कामगिरी  बजावली  आहे. रहस्य  कथेला  साजेसे  रहस्य  टिकवून  ठेवणारे,  प्रेक्षकांची  उत्कंठा  वाढवणारे  संगीत  ही  प्रयोगाची  जमेची  बाजू  आहे.  मात्र,  काही  ठिकाणी  संगीत  संवादांवर  हावी  झाल्याने  संवाद  प्रेक्षकांपर्यंत  पोहचत  नाहीत. समीर  गरुड  ने  कथानक, संवाद  या  बरोबरच  नेपथ्याची  बाजू  ताकदीने  पेलली  आहे. राजवाडेची   वडिलोपार्जित  श्रीमंती  नेपाथ्यायून  प्रेक्षकांपर्यंत  पोहचवण्यात  त्याला  यश  मिळाले आहे.
           या नाटकाला  २०१२ च्या झी गौरव पुरस्कारांमध्ये एकूण ७ नामांकने आणि  सर्वोत्कृष्ट संगीत - अभिषेक हर्विन्दे ,सर्वोत्कृष्ट अभिनेता - रोहन गुजर असे दोन पुरस्कार ही मिळाले आहेत.
           थोडक्यात,  दोन  पात्रीदोन  अंकी  (नाटक)  प्रयोग  असूनही  सर्वोतोपरी  एक  उत्तम  कलाकृती  सादर  झालेय  हे  निश्चित ! खरतर  खटकण्यासारख  नाहीय  काही,  मात्र  black  outs  काही  ठिकाणी अनावश्यक  वाटले.  जर  ते  टाळता  आले  असते  कथानक  अजून  गतिमान  झाले  असते. परंतु  तेवढा  एक भाग  वगळला  तर  एका  आगळ्या  वेगळ्या  प्रयोगाचेखुनाचे  साक्षीदार  किमान  एकदातरी  होणे  MUST आहे.
             ...so be the witness of a murder mystery !

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